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सोमवार, 26 दिसंबर 2011

ज्येष्ठ रंगकर्मी पं. सत्यदेव दुबे कालवश



मुंबई - नाटकांना वेगळ्या वाटेवर नेणारे, रंगभूमीवर नवा इतिहास रचणारे प्रायोगिक रंगभूमीवरील ज्येष्ठ रंगकर्मी पं. सत्यदेव दुबे यांचे आज निधन झाले. ते ७५ वर्षांचे होते. आज सकाळी साडेअकराच्या सुमारास दुबेजींनी शांतपणे या जगाला निरोप दिला. त्यांच्या जाण्याने रंगमंचावरील एक धीरगंभीर आवाज आज शांत झाला आहे. ते अविवाहित होते. त्यांचे असंख्य शिष्यगण हेच त्यांचे गणगोत होते.

वांद्रे येथील साहित्य सहवासातील निवासस्थानी त्यांचे पार्थिव संध्याकाळी पाच वाजेपर्यंत अंत्यदर्शनासाठी ठेवण्यात आले होते. मराठी व हिंदी नाट्यसृष्टीतील अनेक कलाकारांनी त्यांना आदरांजली वाहिली. साडेसहा वाजता शिवाजी पार्क स्मशानभूमीतील विद्युतदाहिनीत त्यांच्यावर अंत्यसंस्कार करण्यात आले. त्यांच्या निधनाने फक्त मराठीच नाही तर हिंदी, इंग्रजी व गुजराती नाट्यसृष्टीही शोकसागरात बुडाली आहे. त्यांच्या जाण्याने प्रायोगिक रंगभूमीवरील प्रयोगशील रंगकर्मी हरपल्याची भावना व्यक्त होत आहे.

नासिरूद्दीन शहा, आशुतोष गोवारीकर, रोहिणी हट्टंगडी मिता वशिष्ठ, विजय केंकरे, अरूण काकडे, अजित भुरे, नंदू माधव, राजपाल यादव आदी मान्यवरांनी त्यांच्या पार्थिवाचे अंत्यदर्शन घेतले. तर शिवाजीपार्क स्मशानभूमीत महेश भट्ट, नीना कुलकर्णी, सुलभा देशपांडे यांच्यासह नाट्यसृष्टीतील रंगकर्मींनी दुबे यांना श्रद्धांजली वाहिली.

दुबेजींना मिळालेले पुरस्कार

संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार ( १९७१)

सर्वोत्कृष्ट पटकथेसाठी राष्ट्रीय चित्रपट पुरस्कार ( चित्रपट भूमिका, १९७८)

सर्वोत्कृष्ट संवादासाठी फिल्मफेअर पुरस्कार ( चित्रपट जुनून, १९८0)

पद्मभूषण ( २0११)

सोमवार, 20 जून 2011

लोकपाल विधेयक पर दो नए मतभेद उभरे

लोकपाल विधेयक पर दो नए मतभेद उभरे



नई दिल्ली। प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाने के विवादास्पद मुद्दे पर सरकार और समाज के सदस्यों के कड़े रूख के बीच लोकपाल विधेयक पर गठित संयुक्त मसौदा समिति की बैठक सोमवार समाप्त हो गई। हालांकि कल 4.30 में फिर से बैठक होगी।

लोकपाल बिल बनाने के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सरकार और सिविल सोसाइटी के नुमाइंदों के बीच सोमवार को हुई बैठक नाकाम रही। इस बैठक के बाद भी जहां एक ओर कुछ मुद्दों पर पहले से ही मौजूद असहमति बरकरार है वहीं दो नए मुद्दों पर असहमति उभर कर सामने आई है।

इस बैठक के बाद आज दोनों पक्षों का रुख नरम रहा और वे एक-दूसरे पर हमलावर तेवरों के साथ मीडिया से नहीं मिले। टीम अन्ना की ओर से प्रशांत भूषण ने बताया कि बैठक का माहौल अच्छा था। कई मुद्दों पर सहमति बनी, लेकिन दो नए मामलों पर मतभेद भी उभर गए।

ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि प्रशांत भूषण ने कहा कि लोकपाल को गठित करने वाली चयन समिति में कौन लोग शामिल होंगे, इस पर असहमति उभरकर सामने आई है। भूषण ने कहा कि सरकारी प्रतिनिधि चयन समिति में सरकार के प्रतिनिधियों को शामिल करना चाहते हैं। जबकि सिविल सोसाइटी के सदस्य स्वतंत्र लोगों को इस समिति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं।

इसके अलावा लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील के अधिकार को लेकर भी मतभेद सामने आया है। सरकारी प्रतिनिधि चाहते हैं कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में अपील का हक केंद्र सरकार के पास रहे। लेकिन सिविल सोसाइटी के सदस्यों का कहना है कि लोकपाल समिति को हटाने के लिए अपील का हक सबको होना चाहिए।

वहीं, ड्राफ्टिंग कमिटी में शामिल सिविल सोसाइटी के सदस्य अरविंद केजरीवाल ने कहा कि हमने लोकपाल बिल को लेकर सरकार को 40 बिंदू दिए थे। सरकार का कहना है कि इनमें से 11 पर सहमति बन गई है। लोकपाल को चुनने के लिए चयन समिति के गठन और उसे हटाने पर सरकार अपना नियंत्रण रखना चाहती है।'

वहीं, दूसरी ओर ड्राफ्टिंग समिति में शामिल सरकारी प्रतिनिधियों की तरफ से मीडिया से बातचीत करते हुए केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने बातचीत को संतोषजनक बताया। कपिल सिब्बल ने बैठक के बाद कहा है कि कई मुद्दों पर समिति में शामिल सरकार और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधियों के बीच सहमति बनी है, लेकिन कुछ मुद्दों पर अब भी असहमति बनी हुई है। उनका कहना है कि जिन मु्द्दों पर पहले से टकराव था, उन पर अब भी कोई सहमति नहीं बन पाई है। सिब्बल ने यह भी कहा कि मंगलवार को शाम साढ़े चार बजे ड्राफ्टिंग कमिटी की बैठक में सरकार के प्रतिनिधि और सिविल सोसाइटी के प्रतिनिधि एक-दूसरे को अपना-अपना ड्राफ्ट सौंपेंगे।

सिब्बल ने यह जानकारी भी दी कि जुलाई में राजनीतिक दलों को लोकपाल बिल का ड्राफ्ट सौंपा जाएगा और उनकी प्रतिक्रिया ली जाएगी। जिसके बाद इसे कैबिनेट में ले जाया जाएगा और फिर संसद में इसे पेश किया जाएगा।

गौरतलब है कि नॉर्थ ब्लॉक में वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी के कार्यालय में 11 बजे शुरू हुई इस बैठक में समाज पक्ष की ओर से न्यायमूर्ति संतोष हेगड़े को छोड़ कर दस सदस्यीय समिति के सभी सदस्य भाग ले लिए थे।

यह बैठक कुछ विवादित मुद्दों को लेकर दोनों पक्षों में वादविवाद की पृष्ठभूमि में शुरू हुई और सरकार ने स्पष्ट कर दिया है कि वह प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे में लाने के खिलाफ है।

इससे पहले, वरिष्ठ मंत्रियों ने सरकार की रणनीति को अंतिम रूप देने के लिए कल शाम विचारविमर्श किया था।

सरकार ने न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को भी लोकपाल के दायरे में लाए जाने का विरोध किया है जबकि अन्ना हजारे नीत समाज की राय है कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए प्रधानमंत्री, न्यायपालिका और संसद में सांसदों के आचरण को लोकपाल के दायरे में लाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति हेगड़े ने कहा कि जहां तक हो सके, हम मुद्दों के हल की कोशिश करेंगे। कुल छह मुद्दे हैं जिन पर हमारी राय अलग अलग है।

पिछली बैठक 15 जून को हुई थी जिसमें सरकार के प्रतिनिधियों ने समाज के सदस्यों से अपना प्रारूप पेश करने को कहा था। इन प्रतिनिधियों ने कहा था कि वह भी अपना प्रारूप पेश करेंगे। यह भी तय किया गया कि मसौदा विधेयक को उन बिंदुओं के साथ मंत्रिमंडल के पास भेजा जाएगा जिन पर मतभेद हैं।

कांग्रेस द्वारा कड़ा रूख अपनाने का संकेत देते हुए पार्टी प्रमुख सोनिया गांधी ने हजारे को एक पत्र भेज कर कहा कि उनके [हजारे] द्वारा उठाए गए मुद्दों पर वह [सोनिया] अपने विचार स्पष्ट कर चुकी हैं।

हजारे के अनशन पर हेगड़े की टिप्पणियों और दिल्ली में हुई बैठक में उनके भाग न लेने के कारण अटकलें लगाई जा रही थीं कि समाज पक्ष के प्रतिनिधियों में मतभेद हैं। इस बारे में हेगड़े ने कहा कि वह यह बताने के लिए 21 जून को होने वाली बैठक में भाग लेंगे कि समाज पक्ष में कोई मतभेद नहीं हैं। उन्होंने कहा कि पूर्व की प्रतिबद्धताओं के चलते वह आज की बैठक में भाग नहीं ले पा रहे हैं।

सरकार ने प्रधानमंत्री के पद को लोकपाल के दायरे में लाने से साफ इंकार किया है वहीं कांग्रेस के कोर समूह ने इस मुद्दे पर सर्वदलीय बैठक बुलाने का पक्ष लिया है।

सरकार के सूत्रों ने संकेत दिया है कि सर्वदलीय बैठक 30 जून के बाद बुलाई जा सकती है क्योंकि तब तक संयुक्त समिति का विधेयक तैयार करने का काम पूरा हो जाएगा।

वरिष्ठ मंत्री पी चिदंबरम और पार्टी के कुछ अन्य शीर्ष नेता कह चुके हैं कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल के दायरे में लाने को लेकर मतभेद हैं।

खबरें हैं कि इस बारे में संप्रग के घकों में भी मतभेद हैं। कहा जा रहा है कि कांग्रेस गठबंधन की अगुवाई कर रही है तो उसे सबको साथ लेकर चलना होगा। गौरतलब है कि सरकार ने इस मामले में राजनीतिक दलों से रायशुमारी के लिए अगले माह सर्वदलीय बैठक बुलाने का भी मन बना लिया है।

लोस अध्यक्ष मीरा कुमार ने बुधवार को सर्वदलीय बैठक बुला कर सरकार को लोकपाल पर विभिन्न दलों की राय जानने का मौका मुहैया करवाया दिया है। बदले राजनीतिक हालात में लोकपाल के अधिकार क्षेत्र को लेकर चुप्पी साधे बैठे विपक्ष के लिए जल्द ही अपना पक्ष साफ करना जरूरी होगा।

हालांकि, सरकार पहले ही तय कर चुकी है कि सोमवार और जरूरत होने पर मंगलवार को बैठक कर समिति अपना काम पूरा कर लेगी। कानून मंत्री वीरप्पा मोइली दावा कर चुके हैं कि समिति दो मसौदों की बजाय एक ही मसौदे में अलग-अलग राय समाहित कर कैबिनेट को सौंपेगी।

सूत्रों के मुताबिक, सर्वदलीय बैठक के लिए अगले माह के पहले हफ्ते की कोई तारीख तय की जाएगी। इस बैठक के जरिए लोकपाल से जुड़े मुद्दों पर सरकार विभिन्न दलों की राय लेना चाहती है। इस बीच लोकसभा अध्यक्ष ने भी बुधवार को सभी दलों के प्रमुख नेताओं को अपने घर पर बैठक के लिए बुलाया है।

 आम तौर पर लोकसभा अध्यक्ष सत्र शुरू होने के पहले ऐसी बैठक बुलाती हैं। मगर इस बार यह बैठक सत्र की तारीख तय होने से पहले ही बुलाई गई है। बैठक में लोकपाल समेत विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। पिछले दिनों कांग्रेस कोर ग्रुप ने तय किया है कि इस मामले पर संसद में बिल लाने से पहले सरकार सभी दलों की राय लेगी। इससे पहले विभिन्न दलों की राय लेने की सरकार की कोशिश नाकाम हो चुकी है।

कनीमोरी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं

कनीमोरी को सुप्रीम कोर्ट से भी राहत नहीं



नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को 2जी स्पेक्ट्रम मामले में द्रमुक सांसद कनीमोरी और कलैंगनर टीवी के प्रबंध निदेशक शरद कुमार की जमानत याचिकाएं खारिज कर दीं।

न्यायमूर्ति जी एस सिंघवी और न्यायमूर्ति बी एस चौहान की विशेष पीठ ने दोनों आरोपियों से कहा कि वे विशेष सीबीआई अदालत में नियमित जमानत याचिका दाखिल करने से पहले उनके खिलाफ आरोप तय होने का इंतजार करें।

न्यायालय ने कहा कि इसके बाद ही सीबीआई अदालत, उनकी पिछली जमानत याचिकाओं पर हुई सुनवाई से अप्रभावित रहते हुए, इस बारे में फैसला कर सकती है। न्यायालय की ओर से जमानत याचिका खारिज करने के फैसले का मतलब है कि आरोप तय होने तक कनीमोरी और कुमार को जेल में ही रहना होगा।

अदालत ने लगभग डेढ़ घंटे तक सीबीआई और आरोपियों के वकीलों की ओर से पेश दलीलें सुनने के बाद जमानत याचिका खारिज करने का फैसला सुनाया।

सीबीआई ने यह कहते हुए जमानत याचिका का विरोध किया कि कलैंगनर टीवी के साथ हुए 200 करोड़ रुपये के अवैध आर्थिक लेन-देन से जुड़े मूल दस्तावेज बरामद होने अभी बाकी हैं और आरोपी जमानत मिलने के बाद सबूतों से छेड़छाड़ कर सकते हैं।

गौरतलब है कि सिंघवी प्रारंभ से ही 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले पर नजर बनाए हुए हैं। वे करोड़ों रुपये के इस घोटाले में प्रभावशाली लोगों की भूमिका के बारे में सरकार से कई बार सवाल कर चुके हैं।

द्रमुक प्रमुख एम. करुणानिधि की बेटी कनीमोरी के लिए जमानत की यह आखिरी उम्मीद है। वह करीब एक महीने से दिल्ली की तिहाड़ जेल में हैं। इससे पहले सीबीआइ की विशेष अदालत और दिल्ली हाई कोर्ट भी उनकी जमानत की अर्जी खारिज कर चुके हैं।

 कनीमोरी और शरद कुमार पर सीबीआइ ने कलैगनर टीवी में 200 करोड़ रुपये के अवैध लेनदेन करने का आरोप लगाया है। स्वान टेलीकॉम के प्रमोटर शाहिद बलवा की डीबी रियलिटी से यह रकम प्राप्त करने वाले कलैगनार टीवी प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में कनीमोरी और कुमार की 20-20 फीसदी हिस्सेदारी है। दोनों को गत 20 मई को गिरफ्तार किया गया था।

शनिवार, 11 जून 2011

अब पश्चिम बंगाल का नाम बदलने की तैयारी

अब पश्चिम बंगाल का नाम बदलने की तैयारी


कोलकाता [निर्भय देवयांश]। लंबे संघर्ष के बाद पश्चिम बंगाल में 'परिवर्तन' का परचम लहराने वाली मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अब राज्य का नाम बदलकर बांग्ला या बंगदेश करना चाह रही हैं। उनका तर्क है, चूंकि देश में सिर्फ पश्चिम बंगाल है और पूर्व बंगाल का कोई अस्तित्व नहीं है। कभी इस नाम से अलग राज्य हुआ करता था, लेकिन पाकिस्तान से विभाजन के बाद पूर्व बंगाल बांग्लादेश बन गया। ऐसे में अब पश्चिम बंगाल का नाम बदल देना चाहिए। ममता को बांग्ला व बंगदेश दोनों नाम पसंद हैं, इसलिए आने वाले समय में किसी एक नाम पर मुहर लग सकती है।

 दूसरी तरफ वामपंथी बुद्धिजीवी इसके पक्ष में नहीं हैं। उनका कहना है कि पश्चिम बंगाल नाम कोई खराब नहीं है। इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि है, इसलिए नाम बदलने की जरूरत नहीं है। बांग्ला साहित्य के वरिष्ठ लेखक सुनील गंगोपाध्याय कहते हैं कि आखिर इसकी क्या जरूरत है? हर राज्य की अपनी पहचान है और उसे आगे भी कायम रखने की जरूरत है। हालांकि, परिवर्तनवादी बुद्धिजीवी नाम परिवर्तन के पक्ष में हैं। जाने-माने पेंटर जोगेन चौधरी कहते हैं कि राज्य के नाम परिवर्तन में हर्ज नहीं है। नई सरकार सोच-समझकर यह कदम उठा रही होगी। जब देश में सिर्फ एक ही बंगाल है, तो पश्चिम शब्द हटाने से अच्छा ही होगा। पेंटर समीर आइच ने उदाहरण देते हुए कहा कि कि पहले भी कई शहरों के नाम बदले गए हैं। कई राज्यों की राजधानी के नाम भी बदले गए हैं। कलकत्ता से कोलकाता, बंबई से मुंबई, मद्रास की जगह चेन्नई..। राज्यों में उड़ीसा का नाम बदलकर ओड़िसा किया गया, फिर पश्चिम बंगाल का नाम में कोई हर्ज नहीं।

शुक्रवार, 20 मई 2011

ममता बनर्जी ने संभाली प. बंगाल की कमान

ममता बनर्जी ने संभाली प. बंगाल की कमान



कोलकाता। पश्चिम बंगाल में वाम के 34 वर्ष के शासनकाल का अंत करने वाली ममता बनर्जी ने 38 सदस्यीय तृणमूल कांग्रेस-कांग्रेस सरकार की मुखिया के तौर पर शुक्रवार को शपथ लेकर एक नया इतिहास रच दिया क्योंकि वह राज्य की पहली महिला मुख्यमंत्री बन गई है।

राज्यपाल एम के नारायणन ने 56 वर्षीय ममता को राज्य की 11वीं मुख्यमंत्री के रूप में पद और गोपनीयता की शपथ दिलवाई। उनके साथ तृणमूल के 35 और कांग्रेस के दो सदस्यों ने मंत्री पत्र की शपथ ली। तृणमूल कांग्रेस के चार विधायकों को राज्यमंत्री के तौर पर शपथ दिलाई गई।

शपथ लेने के समय ममता साधारण सफेद साड़ी और तिरंगा उत्तरीय पहने हुए थीं। उन्होंने बांग्ला में ईश्वर के नाम पर शपथ ली। ममता के कैबिनेट में शामिल होने वालाें में तृणमूल कांग्रेस विधायक दल के उप नेता पार्थ चटर्जी, फिक्की के पूर्व सचिव एवं तृणमूल के टिकट पर चुनाव जीते अमित मित्र, पश्चिम बंगाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मानस भुइयां, कांग्रेस विधायक दल के नेता अबु हिना शामिल हैं। संकेत हैं कि अमित मित्र को राज्य का वित्त मंत्री बनाया जा सकता है।

तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ने दोपहर एक बजकर एक मिनट पर शपथ ली। शपथ का यह समय ममता ने खुद तय किया था। शपथ ग्रहण समारोह में 3,000 से ज्यादा अतिथि मौजूद थे जिनमें पराजित मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य और वाम मोर्चे के संयोजक विमान बोस शामिल थे।

डेढ़ घंटे से अधिक चले शपथ ग्रहण समारोह में केंद्रीय वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी, केंद्रीय गृह मंत्री पी चिदंबरम, राज्य के पूर्व वित्त मंत्री असीम दासगुप्ता, विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष एच ए हलीम भी उपस्थित थे। पूर्व राज्यपाल वीरेन जे शाह ने भी समारोह में शिरकत की।

बुधवार, 18 मई 2011

भारद्वाज ने कहा, येद्दियुरप्पा के पास भारी बहुमत

भारद्वाज ने कहा, येद्दियुरप्पा के पास भारी बहुमत



बेंगलूर। कर्नाटक के राज्यपाल हंसराज भारद्वाज ने बुधवार को कहा कि मुख्यमंत्री बी एस येद्दियुरप्पा के पास भारी बहुमत है और इस बारे में कोई संदेह नहीं है।

कर्नाटक में भाजपा सरकार के साथ एक तरह से चल रहे राजनीतिक युद्ध के बीच, यहां एक सरकारी समारोह में मुख्यमंत्री के साथ मौजूद भारद्वाज ने अपने और येद्दियुरप्पा के बीच मतभेदों से बचने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीब एक सप्ताह बाद पहली बार भारद्वाज और येद्दियुरप्पा एक मंच पर नजर आए।

बहरहाल, खुद को वापस बुलाए जाने की भाजपा की मांग पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि राज्यपाल के तौर पर उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति ने की थी तथा उनके [राष्ट्रपति के] अलावा और कोई उन्हें [भारद्वाज को] वापस नहीं बुला सकता।

कर्नाटक लोकसेवा आयोग के स्वर्ण जयंती समारोह में उन्होंने कहा, 'मैं यह तथ्य जानता हूं कि मुझे पूरी तरह संविधान के अनुरूप ही काम करना है।'

राज्यपाल ने कर्नाटक में राष्ट्रपति शासन लागू करने की सिफारिश की थी जिसके बाद भारद्वाज के खिलाफ भाजपा के उच्च्च स्तरीय अभियान में भाग ले कर आज सुबह नई दिल्ली से लौटे येद्दियुरप्पा तनावमुक्त नजर आए और मंच पर दोनों को कई बार बातचीत करते देखा गया। भारद्वाज ने अपने संबोधन में कहा 'यह समझना चाहिए कि मुख्यमंत्री राज्य के निर्वाचित प्रतिनिधि हैं। उनके पास भारी बहुमत है, इस बारे में कभी कोई विवाद नहीं रहा और हम मित्र हैं। यह राजनीतिक तनाव अप्रासंगिक है। हमें खुद को संविधान और कानून के प्रति समर्पित करना होगा।'

उन्होंने कहा कि जहां तक उनका सवाल है तो उनकी कुछ भी गलत करने की कोई योजना नहीं है लेकिन, 'मेरे हाथ संविधान से बंधे हुए हैं।'

भारद्वाज ने कहा कि वह चाहते हैं कि कर्नाटक में उनकी सरकार एक ख्यातिप्राप्त सरकार बने। उपनिषद को उद्धृत करते हुए उन्होंने कहा कि अतिथि भगवान की तरह होता है और राज्यपाल के तौर पर वह राज्य के अतिथि हैं।

नई दिल्ली में पिछले दो दिन में भाजपा प्रतिनिधिमंडल ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल से मुलाकात कर, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की भारद्वाज की सिफारिश को खारिज करने और उन्हें वापस बुलाने की मांग की।

मुख्यमंत्री राज्यपाल से मिल कर, अपनी सरकार का बहुमत साबित करने के लिए विधानसभा का सत्र शीघ्र बुलाने का अनुरोध करेंगे।

भारद्वाज ने येद्दियुरप्पा को राज्य के विकास के लिए कड़ी मेहनत करने वाला मुख्यमंत्री करार दिया। उन्होंने कहा 'अभी भी मुख्यमंत्री राज्य के विकास के लिए अथक परिश्रम कर रहे हैं। मैं जानता हूं कि वह दिन में 18 से 20 घंटे तक काम करते हैं।'

राज्यपाल ने यह आरोप खारिज कर दिया कि वह पक्षपात करते हैं। उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने जीवन में कभी पक्षपात नहीं किया। उन्होंने कहा कि येद्दियुरप्पा के खिलाफ उनके मन में कुछ भी नहीं है।

उन्होंने कहा, 'मेरे चपरासी से लेकर सचिव तक, मैं सभी के साथ प्यार और अपनेपन से व्यवहार करता हूं और बदले में यही चाहता हूं।' मुख्य सचिव, सचिवों और राज्य के नौकरशाहों को अपने संबोधन में भारद्वाज ने कहा 'सिद्धांतों के आधार पर और एक दूसरे को सम्मान देते हुए काम करिए।'

 उन्होंने राज्य के नौकरशाहों की सराहना करते हुए कहा कि वह अन्य राज्यों में अपने समकक्षों की तुलना में बेहतर काम कर रहे हैं। गुजरे जमाने की याद करते हुए येद्दियुरप्पा ने कहा कि राजनीति में आने से पहले, कभी वह एक क्लर्क के तौर पर सरकारी नौकरी करते थे। उन्होंने कहा 'मुख्यमंत्री बनने के बाद, मैंने कई सबक सीखे। आने वाले दो वर्षों में मैं पारदर्शी प्रशासन पर पूरा ध्यान दूंगा। इसके लिए मैं सभी वरिष्ठों का सहयोग चाहता हूं।'

बुधवार, 11 मई 2011

प्रशासन बेखबर, राहुल पहुंचे भट्टा परसौला गांव

प्रशासन बेखबर, राहुल पहुंचे भट्टा परसौला गांव




ग्रेटर नोएडा। प्रशासन को बिना जानकारी दिए हुए काग्रेस नेता राहुल गांधी ने बुधवार को भट्टा परसौल गाव के लोगों से मुलाकात की। यहा के लोगों की भूमि अधिग्रहण के मुद्दे पर पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई थी। राहुल प्रशासन को सूचित किए बगैर गाव में सुबह के छह बजे पहुंचे और ग्रामीणों के घर गए। उन्होंने स्थानीय लोगों की समस्याओं को समझने के लिए उनसे बात की।

गौरतलब है कि शनिवार को पुलिस और किसानों के बीच हुई झड़प में चार लोगों की मौत हो गई थी, जिसके बाद यह जगह पार्टियों के लिए राजनीतिक अखाड़ा बन गया। राजनीतिक दलों ने उत्तर प्रदेश सरकार की भूमि अधिग्रहण नीति की तीखी आलोचना की है।

अमेठी से सासद राहुल ने बीते साल अलीगढ़ जिले के टप्पल गाव का दौरा किया था और 'यमुना एक्सप्रेस-वे परियोजना' के लिए मायावती सरकार द्वारा अधिग्रहित की गई भूमि के लिए अधिक मुआवजे की माग की थी।

ग्रेटर नोएडा और इससे सटे इलाकों के किसान अपनी जमीन के लिए मायावती सरकार से अधिक मुआवजे की माग कर रहे हैं। इस बीच, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कल दिल्ली में राष्ट्रीय लोक दल के नेताओं के एक प्रतिनिधिमंडल को आश्वस्त किया था कि सरकार संसद के आगामी सत्र में भूमि अधिग्रहण अधिनियम में संशोधन के लिए एक विधेयक पेश करेगी।

भाजपा के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने गौतम बुद्ध नगर में किसानों पर पुलिस कार्रवाई की कल निंदा करते हुए माग की थी कि भूमि अधिग्रहण के चलते विस्थापित हुए लोगों के पुनर्वास के लिए एक नया कानून बनाया जाए।

जोशी ने कहा कि किसानों की जमीन सस्ती दर पर लेना और उद्योगपतियों को इसका दुरूपयोग करने की इजाजत देना गलत है। भूमि अधिग्रहण के खिलाफ जारी आदोलन के मद्देनजर किसानों ने राज्य के गाजियाबाद जिले के महरौली गाव में कल जितेन्दर नागर के नेतृत्व में एक पंचायत की और अपनी जमीन छोड़ने से इंकार कर दिया।

 अपने आदोलन के लिए समर्थन जुटाने के लिए किसान घर-घर गए और ग्रामीणों से कहा कि वह उनकी जमीन वापस दिलाने के लिए सरकार पर दबाव डाले।