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मंगलवार, 12 अप्रैल 2011

जापान का परमाणु संकट चेर्नोबिल जितना खतरनाक

जापान का परमाणु संकट चेर्नोबिल जितना खतरनाक


टोक्यो। जापान के फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में विकिरण का स्तर अब तक के सबसे खतरनाक परमाणु हादसे चेर्नोबिल के बराबर पहुंच चुका है। फुकुशिमा परमाणु संयंत्र में मंगलवार को इमरजेंसी का स्तर बढ़ाकर लेवल-7 कर दिया गया।

यही स्तर 1986 में यूक्रेन के चेर्नोबिल के परमाणु हादसे के समय नियत किया गया था। हालांकि परमाणु विशेषज्ञों ने कहा है कि हम विकिरण की मात्रा का सही आकलन करने के बाद ही खतरे के वास्तकविक स्तर के बारे में बता पाएंगे।

जापान की परमाणु सुरक्षा एजेंसी के प्रवक्ता हिदेहिको निशियामा ने कहा, 'चेर्नोबिल परमाणु दुर्घटना और फुकुशिमा के हालात में काफी अंतर है। चेर्नोबिल रिएक्टर फट गया था और उसमें कई लोगों की मौत हो गई थी। उसमें विकिरण के रिसाव की वजह रिएक्टर में धमाका था। हालांकि फुकुशिमा में भी रिएक्टर की इमारत की छत धमाके में गिर गई थी, लेकिन रिसाव के बावजूद एक भी रिएक्टर ध्वस्त नहीं हुआ। फुकुशिमा में चेर्नोबिल के मुकाबले केवल दस प्रतिशत ही रिसाव हुआ है।'

उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय पैमाने के हिसाब से फुकुशिमा में अभी लेवल पांच की इमरजेंसी है, मगर सुरक्षा की दृष्टि से इसे लेवल-7 कर दिया गया है। अभी तक हम यह नहीं पता लगा पाए हैं कि रिसाव कितना हो रहा है।

सोमवार को जापान के परमाणु आयोग ने कहा था कि फुकुशिमा में अब प्रति घंटा दस हजार टेराबेक्वेल्स [विकरण की रफ्तार मापने इकाई] रेडियोधर्मी पदार्थ, आयोडीन-131 रिस रहा है।

मुख्य कैबिनेट सचिव युकियो इदानो के अनुसार, विकिरण के चलते अभी तक किसी की मौत नहीं हुई है, लेकिन फुकुशिमा रिएक्टर में इस संकट से जूझने वाले 21 कर्मियों में विकिरण के कुछ लक्षण देखे गए हैं।

भूकंप और धमाका:-

जापान में मंगलवार को आए 6.3 के भूकंप के बाद फुकुशिमा के बंद पड़े रिएक्टर नंबर चार में धमाका हुआ। इसमें किसी के हताहत होने की खबर नहीं है। इंजीनियर इस पर काबू पाने में लगे हैं। भूकंप के बाद नारिता एयरपोर्ट के रनवे को भी बंद कर दिया गया।

चेर्नोबिल की विभीषिका

1986 में 26 अप्रैल को दुनिया का सबसे बड़ा परमाणु हादसा हुआ। आधी रात को यूक्रेन स्थित चेर्नोबिल पावर प्लांट में हुए दो धमाकों ने रिएक्टर की छत को उड़ा दिया और रेडियोधर्मी पदार्थ बहने गला। छत फटने के कारण बाहरी हवा अंदर आने लगी और रिएक्टर के अंदर स्थित कार्बन मोनाक्साइड प्रज्ज्वलित हो गया। इसके फलस्वरूप आग लग गई जो कि नौ दिन तक धधकती रही। इस घटना में निकलने वाली रेडियोधर्मी किरणें हिरोशिमा और नागासाकी पर गिराए गए एटम बम से सौ गुना अधिक थीं। इस हादसे में 32 लोगों की मौत हो गई और 38 अगले कुछ महीनों में खतरनाक विकरण के प्रभाव से मर गए।

क्या है परमाणु विकिरण के खतरे का स्केल?

नई दिल्ली [जागरण न्यूज नेटवर्क]। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका द्वारा जापान पर गिराए गए परमाणु बम ने पहली बार दुनिया को परमाणु शक्ति से रू-ब-रू कराया। इसे विश्व में परमाणु युग की शुरुआत भी कह सकते हैं।

इसके बाद दुनिया भर में परमाणु शक्ति के प्रयोग का सिलसिला शुरू हो गया, लेकिन परमाणु की बेपनाह ताकत को काबू करने में हुई हल्की सी चूक के भयानक नतीजे सामने आने लगे।

1990 में अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी [आइएईए] ने परमाणु विकिरण के खतरे को नापने के लिए 'इंटरनेशनल न्यूक्लियर एंड रेडियोलॉजिकल इवेंट स्केल' तैयार किया। स्केल में परमाणु संयंत्रों से होने वाली दुर्घटनाओं को उनके संभावित खतरे के आधार पर शून्य से लेकर सात स्तर तक विभाजित किया गया। सभी स्तर पिछले स्तर से 10 गुना अधिक खतरनाक होते है।

क्या हैं स्तर:-

स्तर-0 [परमाणु विचलन]: इस स्तर पर परमाणु विकिरण से नुकसान का खतरा शून्य। अतिरिक्त सुरक्षा की आवश्यक्ता नहीं।

स्तर-1 [अनियमित]: इस स्तर पर वैधानिक वार्षिक सीमा से अधिक रिसाव होने पर आम आदमी में विकिरण का खतरा होता है। जबकि संयंत्र कर्मचारियों के लिए सामान्य माना जाता है।

स्तर-2 [घटना]: आम लोगों में 10 मिलिसीवियटर््स से अधिक विकिरण का खतरा। संयंत्र कर्मचारियों के लिए भी जोखिम। स्वास्थ्य के लिए अधिक चिंताजनक नहीं।

स्तर-3 [गंभीर घटना]: स्वास्थ्य के लिए चिंताजनक, विकिरण के संपर्क में रहने से बाहरी शरीर के जलने का खतरा।

स्तर-4 [स्थानीय प्रभाव वाली दुर्घटना]: विकिरण के कारण जान जाने की आशंका। सुरक्षा उपायों की जरूरत।

स्तर-5 [व्यापक परिणाम वाली दुर्घटना]: अधिक विकिरण के कारण लोगों के मारे जाने का खतरा ज्यादा। अधिक सुरक्षा उपायों की जरूरत।

स्तर-6 [गंभीर दुर्घटना]: अत्यधिक विकिरण का खतरा। रोकने के निर्णायक कदम उठाने की आवश्यकता।

स्तर-7 [अति गंभीर दुर्घटना] : व्यापक स्वास्थ्य और पर्यावरण दुष्प्रभाव। निर्णायक और विस्तृत सुरक्षा उपायों की जरूरत।