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बुधवार, 20 अप्रैल 2011

पीएसएलवी ने तीन उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाया

पीएसएलवी ने तीन उपग्रहों को कक्षा में पहुंचाया



श्रीहरिकोटा [आध्र प्रदेश]। पिछले वर्ष दिसम्बर में जीएसएलवी की विफलता के बाद इसरो ने अपने पहले सफल मिशन के तहत भरोसेमंद पीएसएलवी रॉकेट के जरिए तीन उपग्रहों को बुधवार को कक्षा में स्थापित कर दिया।

ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान [पीएसएलवी] अपने 18वें मिशन पर यहा स्थित अंतरिक्ष केंद्र से सुबह 10 बजकर 12 मिनट पर प्रक्षेपित हुआ।

जैसे-जैसे रॉकेट का हर एक चरण सफल होता गया, सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में मौजूद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने तालिया बजाकर जश्न मनाया। पीएसएलवी-सी16 ने अपने प्रक्षेपण के 18 मिनट बाद तीन उपग्रहों को 822 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थित कक्षा में स्थापित कर दिया।

प्रक्षेपण के बाद मिशन नियंत्रण केंद्र से बाहर आए भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो] के अध्यक्ष के. राधाकृष्णन ने मिशन की सफलता की घोषणा की और इसे 'मानक प्रक्रिया के तहत' हुआ प्रक्षेपण करार दिया। प्रक्षेपण के दौरान यह यान पूरे समय अपने पथ पर ही रहा।

पीएसएलसी-सी16 अपने साथ 1,206 किलोग्राम वजनी आधुनिक पृथ्वी पर्यवेक्षण उपग्रह रिसोर्ससैट-2, भारत और रूस द्वारा तारामंडलीय और पर्यावरणीय अध्ययन के लिए निर्मित 92 किलोग्राम वजनी यूथसैट और सिंगापुर स्थित नेनयाग टेक्नोलॉजी यूनिवर्सिटी द्वारा मानचित्रीकरण उपयोग के लिए विकसित 106 किलोग्राम वजनी एक्स-सैट ले गया है।

मिशन सफल होने की इसरो प्रमुख की घोषणा के बाद मिशन नियंत्रण केंद्र में मौजूद कई वैज्ञानिकों में खुशी की लहर दौड़ गई। वैज्ञानिकों ने राहत की सास ली क्योंकि पिछले वर्ष जीएसएलवी मिशन लगातार दो बार विफल हो गया था।

करीब 1,200 किलोग्राम वजनी रिसोर्ससैट-2 पाच वर्ष अंतरिक्ष में रहेगा। वह वर्ष 2003 में प्रक्षेपित रिसोर्ससैट-1 का स्थान लेगा और प्राकृतिक संसाधनों के बारे में 'मल्टीस्पेक्टरल' और 'स्पाशियल कवरेज' मुहैया कराएगा। पिछले वर्ष दिसम्बर में जीएसएलवी मिशन तब विफल हो गया था जब संचार उपग्रह जीसैट-5पी को ले जा रहे स्वदेश निर्मित जीएसएलवी-एफ06 में प्रक्षेपण के एक मिनट के भीतर ही बीच हवा में धमाका हो गया और वह बंगाल की खाड़ी में जा गिरा। जीसैट-5पी में 24 सी-बैंड और 12 विस्तारित सी-बैंड ट्रासपोंडर्स थे। रॉकेट के प्रक्षेपण पथ से भटक जाने के बाद वह समुद्र में जा गिरा था। इससे पहले अप्रैल 2010 में भी जीसैट-4 को ले जा रहा जीएसएलवी-डी3 मिशन विफल हो गया था, जिससे भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को गहरा झटका लगा था।

पीएसएलवी का आज हुआ कामयाब प्रक्षेपण इस मिशन का लगातार 17वा सफल मिशन है। पीएसएलवी मिशन सिर्फ एक बार विफल हुआ था, जब यान को सितंबर 1993 में पहली बार प्रक्षेपित किया जा रहा था।

राधाकृष्णन ने कहा कि दो विदेशी उपग्रहों का प्रक्षेपण दर्शाता है कि पीएसएलवी की विश्वसनीयता को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। मिशन निदेशक पी. कुन्हीकृष्णन ने कहा कि यह पूरे इसरो समुदाय के लिए खुशी का मौका है। इसरो ने अपने साहस को साबित किया और मिशन काफी अच्छी तरह से सफल हुआ। यह देश को दोबारा आश्वस्त कराने की तरह है कि इसरो में भरोसा जताना पूरी तरह जायज है। निदेशक की इस टिप्पणी ने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को उत्साह से भर दिया, जिनका जीएसएलवी की दो लगातार विफलताओं के बाद मनोबल बढ़ाए जाने की जरूरत थी।

रॉकेट के प्रक्षेपण और उसके अंतरिक्ष में पहुंचने तक मिशन नियंत्रण केंद्र में मौजूद अंतरिक्ष वैज्ञानिकों में चिंता का भाव था। अंतरिक्ष यान से उपग्रहों के अलग होने के हर चरण के सफल होने पर वैज्ञानिकों ने तालिया बजाकर जश्न मनाया।

रिसोर्ससैट-2 में एक ही प्लेटफार्म पर तीन हाई रिजॉल्यूशन कैमरे लगे हैं। ए कैमरे ऐसी तस्वीरें लेंगे जो फसलों की स्थिति के आकलन में मददगार होंगे। ए कैमरे वन कटाई की स्थिति, झीलों और जलाशयों के जल स्तर तथा हिमालय में पिघलने वाली बर्फ पर नजर रखेंगे।

इसरो अधिकारियों ने कहा कि इससे संसाधनों से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर ध्यान देने के लिए जरूरी राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय जानकारी एकत्रित करने में मदद मिलेगी। साथ ही, कृषि, जल संसाधन, ग्रामीण विकास, जैविक संसाधन और भौगोलिक संभावनाओं से जुड़े विशिष्ट क्षेत्रों में निगरानी भी हो सकेगी। इस उपग्रह से मिलने वाली जानकारी आपदा प्रबंधन तथा अन्य संबंधित गतिविधियों में मददगार साबित होगी।

च्च्च, मध्यम और तीक्ष्ण रिजॉल्यूशन वाले तीन कैमरे के साथ ही रिसोर्ससैट-2 में दो 'सॉलिट स्टेट रिकॉर्डर' हैं। ऐसे प्रत्एक रिकॉर्डर की तस्वीरें कैद करने की क्षमता 200 जीबी की है। इन तस्वीरों को पृथ्वी पर मौजूद केंद्र हासिल कर सकेंगे। इस उपग्रह में कनाडा के 'कॉमडेव' द्वारा निर्मित स्वचलित पहचान प्रणाली भी मौजूद है। यह वीएचएफ बैंड की जहाज निगरानी प्रणाली है ताकि पोतों के स्थान, गति तथा अन्य तरह की जानकारी हासिल की जा सके।

संसदीय कार्य राज्य मंत्री वी. नारायणसामी ने इस सफल प्रक्षेपण को ऐतिहासिक करार दिया और कहा कि वैज्ञानिक इस तरह के अधिक प्रयास करें, इसके लिए प्रधानमंत्री तथा सरकार उनके साथ है।

पीएसएलवी की सफलता के पीछे कड़ी मेहनत

-देश के धु्रवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान [पीएसएलवी] ने अपनी सफलता की कहानी दोहराई है, जिसके पीछे वैज्ञानिकों की कड़ी मेहनत छिपी है। पीएसएलवी का यह लगातार 17वा सफल मिशन है जिसके तहत श्रीहरिकोटा से रिमोट सेंसिंग उपग्रह रिसोर्ससैट-2 को प्रक्षेपित किया गया है।

पीएसएलवी-सी16 के साथ दो नैनो उपग्रह भी प्रक्षेपित किए गए हैं। इस सफल प्रक्षेपण ने अंतरिक्ष क्षेत्र के अरबों डॉलर के वैश्विक बाजार में भारत की व्यावसायिक क्षमताओं को एक बार फिर साबित कर दिया है।

यह मिशन सिर्फ एक बार विफल हुआ था जब सबसे पहले पीएसएलवी-डी। को 20 सितंबर 1993 को प्रक्षेपित किया गया था। इसके बाद से यह मिशन हर बार सफल ही रहा है।

वर्ष 1994 से पीएसएलवी को इसरो का तिरुवनंतपुरम स्थित विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र विकसित कर रहा है। पीएसएलवी के जरिए 44 उपग्रह प्रक्षेपित हो चुके हैं, जिनमें से 25 विदेशी उपग्रह थे। पीएसएलवी ने जो अहम प्रक्षेपण किए हैं, उनमें भारत का चंद्र अभियान 'चंद्रयान-1' शामिल है जिसे अक्तूबर 2008 में भेजा गया था। इसके अलावा कार्टोसैट और रिसोर्ससैट-1 भी अहम प्रक्षेपणों में शामिल हैं।

मानक पीएसएलवी 44 मीटर लंबा होता है और इसका वजन 295 टन होता है। यह अपने साथ 1,600 किलोग्राम वजनी उपग्रह ले जा सकता है और उन्हें सौर समकालिक धु्रवीय कक्षा में 620 किलोमीटर की ऊंचाई पर स्थापित कर सकता है। पीएसएलवी भू-समकालिक स्थानातरण कक्षा में भी 1,050 किलोग्राम वजनी उपग्रह स्थापित कर सकता है।

इसरो ने कहा कि पीएसएलवी ऐसा परिवर्तनशील यान बन गया है जो धु्रवीय सौर समकालिक कक्षा, निम्न पृथ्वी कक्षा और समकालिक स्थानातरण कक्षा में कई उपग्रहों को स्थापित कर सकता है। इसमें चार चरण होते हैं और यह ठोस तथा तरल संचालन प्रणाली का बारी-बारी से इस्तेमाल करता है।

विविध प्रकृति की बनावट के साथ पीएसएलवी ने एक ही प्रक्षेपण में कई पेलोड और कई मिशन को साथ ले जाने की क्षमता साबित कर दी है।

पीएसएलवी मिशन से जुड़े घटनाक्रम इस प्रकार हैं -

अंतरिक्ष उपग्रह तिथि परिणाम

पीएसएलवी-डी1 आईआरएस-1ई

20 सितंबर 1993 विफल

पीएसएलवी-डी2 आईआरएस-पी2 1 5 अक्तूबर 1994 सफल

पीएसएलवी-डी3 आईआरएस-पी3 2 1 मार्च 1996 सफल

पीएसएलवी-सी1 आईआरएस-1डी 29 सितंबर 1997 सफल

पीएसएलवी-सी1 ओशियनसैट

और दो अन्य उपग्रह

26 मई 1999 सफल

पीएसएलवी-सी3 टीईएस

22 अक्तूबर 2001 सफल

पीएसएलवी-सी4 कल्पना-1 12 सितंबर 2002 सफल

पीएसएलवी-सी5 रिसोर्ससैट-1 17 अक्तूबर 2003 सफल

पीएसएलवी-सी6 कार्टोसैट-1 और हैमसैट पाच मई 2005 सफल

पीएसएलवी-सी7 कार्टोसैट-2

और तीन अन्य उपग्रह

10 जनवरी 2007 सफल

पीएसएलवी-सी8 एजाइल

23 अप्रैल 2007 सफल

पीएसएलवी-सी10 टीईसीएसएएआर 23 जनवरी 2008 सफल

पीएसएलवी-सी9 कार्टोसैट - 2ए

आईएमएस-1 और आठ नैनो उपग्रह

28 अप्रैल 2008 सफल

पीएसएलवी-सी11 चंद्रयान-1 22 अक्तूबर 2008 सफल

पीएसएलवी-सी12 आरआईसैट-2

और एएनयूसैट

20 अप्रैल 2009 सफल

पीएसएलवी-सी14 ओशियनसैट-2

और छह अन्य उपग्रह

23 सितंबर 2009 सफल

पीएसएलवी-सी15 कार्टोसैट-2बी

और चार अन्य उपग्रह

12 जुलाई 2010 सफल

पीएसएलवी-सी16 रिसोर्ससैट-2

और दो अन्य उपग्रह

 20 अप्रैल 2011 सफल