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बुधवार, 9 मार्च 2011

ये फासले- भावनात्मक द्वंद का प्रभावहीन चित्रण

ये फासले- भावनात्मक द्वंद का प्रभावहीन चित्रण



मुख्य कलाकार : अनुपम खेर, पवन मल्होत्रा,रुशद राणा, किरण कुमार, सुधा चंद्रन, सीमा बिस्वास, राजेन्द्र गुप्ता, सत्यजीत शर्मा

निर्देशक : योगेश मित्तल

तकनीकी टीम : निर्माता- ओमप्रकाश मित्तल, संगीत- दीपक पंडित

पिता के आचार-विचार और व्यवहार के प्रति एक युवा बेटी का संदेहास्पद होना और अपनी मां का हत्यारा मानकर अजीज पिता को स्वयं कानूनन मौत के द्वार पहुंचा देना रोचक विषय है, लेकिन नए निर्देशक योगेश मित्तल इस विषय को पर्दे पर रोचक तरीके से पेश करने में सफल नहीं हुए हैं। पिता-पुत्री की भावनात्मक द्वंद से भरपूर इस कहानी में निर्देशक को अपने अनुभवी और प्रतिभाशाली सह-लेखकों अतुल तिवारी और मनुऋषि का अपेक्षित सहयोग नहीं मिला है।

विदेश से लंबे समय बाद पढ़ाई पूरी करके लौटी अरूणिमा अपने पिता देविंदर देवीलाल दुआ के साथ रहना चाहती है, लेकिन पिता उसे खुद से दूर रखना चाहते हैं। अरू अपने पिता को अच्छा इंसान मानती है। उनकी इज्जत करती है, लेकिन अचानक एक दिन जब वह उनका उग्र रूप देखती है तो हैरान हो जाती है। अपनी स्वर्गवासी मां के बारे में पापा द्वारा उसे बताई गई बातें झूठ निकलती हैं तो वह उन पर शक करने के लिए मजबूर हो जाती है। खोज करने पर अरू को पता चलता है कि पापा ने उसकी मां की हत्या की थी। वह पापा के खिलाफ केस दायर करती है और कानूनन उन्हें मौत की सजा मिलती है। अरू को अभी तक यकीन नहीं होता कि मां की हत्या पापा ने की है। अरू का ब्वॉयफ्रेंड मनु असली हत्यारे को ढूंढ़ने में कामयाब होता है।

योगेश मित्तल न तो देवीलाल दुआ और अरूणिमा के बीच के भावनात्मक दृश्यों और न ही कोर्ट के दृश्यों को संभाल पाए हैं। यकीन नहीं होता कि अतुल तिवारी और मनुऋषि जैसे लेखकों ने पटकथा और संवाद लिखे हैं। मध्यांतर के बाद फिल्म इतनी नीरस हो गई है कि अनुपम खेर, पवन मलहोत्रा और नई अभिनेत्री टीना देसाई का सधा अभिनय भी नहीं बांध पाता। गीत फिल्म में अनावश्यक लगते हैं।