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शनिवार, 5 मार्च 2011

द्रमुक ने तोड़ी यूपीए से सात साल पुरानी दोस्ती

द्रमुक ने तोड़ी यूपीए से सात साल पुरानी दोस्ती




नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। तमिलनाडु में द्रमुक और कांग्रेस के बीच सीटों के बंटवारे की खींचतान संप्रग गठबंधन पर भारी पड़ गई। दबाव की इस राजनीति में द्रमुक ने सरकार से बाहर जाने एलान कर दिया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी अकेले चुनाव में जाने को तैयार है। वैसे सात साल पुराने इस रिश्ते पर बातचीत के रास्ते अभी भी बंद नहीं हुए हैं। द्रमुक मुद्दों पर आधारित समर्थन जारी रखने की बात कह रही है।

चेन्नई में दो घंटे तक चली बैठक के बाद द्रमुक सुप्रीमों व तमिलनाडु के मुख्यमंत्री करुणानिधि ने कांग्रेस पर गठबंधन तोड़ने का आरोप लगाते हुए सभी छह केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफे का एलान कर दिया। करुणानिधि ने कहा कि फिलहाल द्रमुक बाहर से सरकार को 'मुद्दों पर आधारित' समर्थन देता रहेगा। साथ ही द्रमुक कोटे से केंद्रीय मंत्री टी.आर. बालू ने गठबंधन जारी रखने और तमिलनाडु में समझौता होने की गुंजाइश कायम रखते हुए बयान जारी किया कि उनकी पार्टी सरकार से बाहर जाने के फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है। बशर्ते सीटों के मामले में कांग्रेस तार्किक रवैया अपनाए।

करुणानिधि के इस दांव के बाद कांग्रेस दबाव में आ गई है। उसकी असली चिंता तमिलनाडु नहीं, बल्कि पश्चिम बंगाल और केरल है। द्रमुक के बाहर होने के बाद इन दोनों राज्यों में सहयोगी दल कांग्रेस पर दबाव और बढ़ा देंगे। इन हालात के मद्देनजर प्रणब मुखर्जी डीएमके नेतृत्व से बात करेंगे और कांग्रेस किसी दूत को भी चेन्नई भेजेगी। बीच का रास्ता निकालने की कोशिशों का ही नतीजा है कि कांग्रेस प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अभी बातचीत जारी है, लिहाजा इसे अंतिम न समझा जाए।

तमिलनाडु में पिछले विधानसभा चुनाव में 48 सीटों पर लड़ने वाली कांग्रेस ने इस दफा बेहद आक्रामक रुख अपनाते हुए द्रमुक को 60 सीटों तक झुका लिया। अब कांग्रेस 63 से नीचे आने को तैयार नहीं थी और वास्तव में झगड़ा ज्यादा सीटें लेने से ज्यादा जिताऊ या मजबूत सीटें हथियाने को लेकर है। आमतौर पर द्रमुक की जिद के आगे झुकती रही कांग्रेस ने मौजूदा सियासी हालात का फायदा उठाते हुए करुणानिधि को खूब झुकाया, लेकिन तनाव से सात साल पुराना गठबंधन टूटने के कगार पर जा पहुंचा है। द्रमुक ने चेन्नई में एक प्रस्ताव पारित कर कहा कि 'कांग्रेस का रुख चौंकाने वाला है। उनके रुख से साफ है कि वे अब हमें संप्रग में देखना नहीं चाहती।'

कुल मिलाकर करुणानिधि ने गठबंधन में ज्यादती का ठीकरा भी कांग्रेस के मत्थे मढ़ दिया है। वैसे भी यह पहले बार नहीं है कि द्रमुक ने सरकार से बाहर रहने का फैसला किया हो। संप्रग-टू बनते ही मंत्रिमंडल में ए. राजा को शामिल कराने के लिए द्रमुक ने सरकार से बाहर रहकर कांग्रेस को ब्लैकमेल किया था। अब देखना है कि इस दफा उनका यह दांव कितना कारगर साबित होता है।

सरकार को खतरा नहीं, लेकिन बढ़ेंगी मुश्किलें

नई दिल्ली। यदि द्रमुक संप्रग से समर्थन वापस भी ले तो केंद्र में सरकार को कोई खतरा नहीं होगा, लेकिन उसकी सियासी मुश्किलें जरूर बढ़ेंगी। संप्रग के 272 सांसदों में से यदि द्रमुक के 16 बाहर चले जाएं तो लोकसभा में उसकी संख्या बहुमत के लिए जरूरी आधी सीटों से भी कम 256 रह जाएगी। हालांकि, लोकसभा की 542 सीटों के लिहाज से वह अल्पमत में इसलिए नहीं आएगी क्योंकि उसके पास सपा के 22, बसपा के 21 और राजद के चार सांसदों समेत कुल 47 सांसदों का बाहर से समर्थन मौजूद है।

द्रमुक के बाहर जाने के बाद संप्रग के दूसरे सहयोगी ममता, शरद पवार के अलावा बाहर से समर्थन दे रहे सपा और बसपा के तेवर बदलने का खतरा कायम रहेगा। चूंकि, अगले साल उत्तार प्रदेश के विधानसभा चुनाव हैं, लिहाजा पार्टी अभी वहां अपने प्रतिद्वंदी दलों पर निर्भरता भी नहीं चाहती। इसीलिए, कांग्रेस का एक खेमा अभी द्रमुक को पूरी तरह से विपक्षी खेमे में देखने से बचना चाहता है।