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गुरुवार, 24 मार्च 2011

पीएम को नैतिकता के कठघरे में लाने की कोशिश

पीएम को नैतिकता के कठघरे में लाने की कोशिश




नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। दोबारा मिले जनादेश का हवाला देकर विकिलीक्स रहस्योद्घाटन पर विपक्ष को चुप कराने वाले प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह को बुधवार को नैतिकता के कठघरे में घेरने की कोशिश हुई। मुख्य विपक्ष भाजपा के साथ जदयू और वामदलों ने भी कुछ अकाट्य तर्को के साथ उन्हें आगाह किया कि इतिहास से डरें। पैसे के बदले वोट का नजारा सबकी आंखों के सामने हुआ है। संसदीय समिति भी मान चुकी है कि इसकी पर्याप्त जांच होनी चाहिए। लिहाजा ऐसा काम न करें कि उनकी रहबरी पर ही सवाल खड़े हो जाएं। उन्होंने मांग की कि इसकी जांच सीबीआइ से हो और उसमें उन लोगों के भी नाम जोड़े जाएं जिनका विकिलीक्स में जिक्र है। बुधवार को भी राजग ने प्रधानमंत्री के जवाब से असंतोष जताते हुए वाकआउट किया।

पिछले सप्ताह संसद में विकिलीक्स पर हुए प्रधानमंत्री के बयान को विपक्ष ने कई सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया। बुधवार को दोनों सदनों में चर्चा को दौरान विपक्ष की ओर से सुषमा स्वराज, अरुण जेटली, गुरुदास दासगुप्ता, शरद यादव सरीखे नेताओं ने आगाह किया कि किसी की आड़ में छिपकर चेहरा बचाने की कोशिश न करें। सुषमा ने कहा कि विकिलीक्स ने विपक्ष के आरोपों को पुष्ट किया है कि सरकार बचाने के लिए खरीद फरोख्त की गई थी। विकिलीक्स ने घटना का जिक्र किया है और उसमें सच्चाई के अलावा कुछ नहीं हो सकता है। खासतौर पर तब जबकि संसद में इसकी तस्वीर पहले ही दिख चुकी है। प्रधानमंत्री के बयान का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री की आदत है कि वह 2जी को राजा के माथे, राष्ट्रमंडल को कलमाड़ी के माथे मढ़कर अपना बचाव करते रहे हैं। सुषमा के साथ गुरुदास ने भी कहा कि जनादेश मिलने के साथ सारे अपराध खत्म नहीं हो जाते हैं। सरकार के घाव को कुरेदते हुए उन्होंने कहा कि 1984 के सिख दंगे के बाद कांग्रेस बहुत बड़े बहुमत से जीती थी, तो क्या सरकार उस दाग से बच सकती है।

राज्यसभा में जेटली ने भी कहा कि लेन देन के दस्तावेजी सबूत हैं। लेकिन सरकार गुनहगारों को सजा दिलाने की बजाय उन पर अंगुली उठा रही है जिन्होंने इसका पर्दाफाश किया। शरद यादव ने प्रधानमंत्री के इकबाल पर सवाल उठाया। प्रधानमंत्री को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि सीवीसी और 2जी के मामले में सरकार को कोर्ट के शरणागत होना पड़ा है। मुलायम सिंह पूरे मामले में बचाव पक्ष की भूमिका में रहे।

मनमोहन ने भी सीखी अदा..

नई दिल्ली [मुकेश केजरीवाल]। अगर लड़ाई तर्को और तथ्यों की बजाय जज्बात और अल्फाज की थी तो यकीनन जीत प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की हुई। बोझिल गंभीरता का पर्याय बन चुके डॉ. मनमोहन सिंह इस बार बिल्कुल नए अंदाज में थे। इन कुछ क्षणों में उन्होंने तकरीबन आठ दशकों में अपनी ही बनाई छवि को पूरी तरह चुनौती दे दी।

'माना कि तेरी दीद के काबिल नहीं हूं मैं..। तू मेरा शौक देख.. मेरा इंतजार देख।' शायराना अदा के साथ., जम कर रस लेते हुए., शब्दों के बीच पर्याप्त विराम दे., और सामने बैठी विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज की आंखों में आंखें डाल.. जिस तरह प्रधानमंत्री ने इकबाल की इन पंक्तियों को पेश किया, ये लम्हे उनके पूरे सार्वजनिक जीवन के सबसे खास मौकों में जुड़ जाएंगे।

अपना भाषण तक देख कर पढ़ने वाले मनमोहन सिंह ने इन पंक्तियों के जरिए विपक्ष पर जोरदार वार कर दिया। कुछ देर पहले ही विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने उन पर हमले के लिए इकबाल का सहारा ले कर कहा था- 'ना इधर, उधर की तू बात कर.. ये बता कि काफिला क्यों लुटा। हमें रहजनों से गिला नहीं.. तेरी रहबरी का सवाल है।' लेकिन मनमोहन सिंह की आश्चर्यजनक सहजता और आत्म विश्वास ने जैसे पूरी बाजी ही पलट दी।

ऐसा नहीं कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पहली बार शेर पढ़ा हो। कुर्सी संभालने के तुरंत बाद पाकिस्तान के तब के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ को उन्होंने दोनों मुल्कों के रिश्तों के सिलसिले में यह शेर सुनाया था-'आ कि इन तरीकों से सुर्खियां पैदा करें..। इस जमीन की बस्तियों से आसमान पैदा करें।' एक शेर मनमोहन सिंह का खास पसंदीदा है- 'कुछ ऐसे भी मंजर हैं तारीख की नजरों में..। लम्हों ने खता की सदियों ने सजा पाई।' यह शेर उन्होंने पिछले सत्र में दूसरी बार सुनाया था।